भारत में दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में हो रहे विकास पर लेख :

हम सभी जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश हैं. यहां की 60% से अधिक जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती हैं. इतनी बड़ी आबादी का कृषि कार्यो एवमं उत्पादों से जुड़े होने के कारण देश में पशुओं का अत्यंत महत्व हैं. पशुओं के गोबर का उपयोग कार्बनिक तरीके से खेती करने के लिए उर्वरक के रूप में किया जाता हैं.

विश्व की कुल पशुओ की संख्या का एक तिहाई से अधिक भारत मे ही हैं. परन्तु दूध उत्पादन के संदर्भ में हमारी उत्पादन इस अनुपात में नही हैं. इसकी प्रमुख कारण यहां की पशुओ की स्वास्थ्य में कमी, उत्तम उपयुक्त भोजन की कमी एवं प्रजनन तथा प्रबन्ध सम्बंधित विकास की कमी. वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार इन कमियों को दुरूस्त करके देश मे हो रही दूध उत्पादन को 50 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता हैं।

दुग्ध उत्पादों की विकास की प्रारंभिक कदम :

तृतीय पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना की गई. जिसके अंतर्गत दुग्ध की उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत सरकार की कई संस्थाये पूरे देश मे कार्य कर रही हैं। ये संस्थाये दुग्ध उत्पादों की विकास के लिए निम्न कार्य करती हैं

● सर्वेक्षण करना
● परियोजना बनाना
● उचित दर पर उपकरण उपलब्ध कराना
● डेयरी अनुसंधान को नियंत्रित करना
● पशुओं की प्रजनन की व्यवस्था करना
● पशुपालकों को पशुओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाना

भारत मे दुग्ध उत्पादन में क्रांति चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के दौरान चलाई गई "ऑपरेशन फ्लड" को माना जाता है. इस योजना के दौरान पशुओं के स्वास्थ्य एवं उनके प्रजनन की विशेष महत्व दिया गया. इस योजना को विकास कार्य को मुख्यतः तीन चरण में माना जाता हैं।

ऑपरेशन फ्लड योजना प्रथम (1970-1981)

ऑपरेशन फ्लड योजना के प्रथम चरण में निम्न कार्यों पर विशेष महत्व दिया गया

●उन्न्त पशुधन का विकास करना
●दुग्ध की आयु बढ़ाने के लिए उसे पाश्चुरीकरण करना
●पशुओं के लिए उपयुक्त आहार उपलब्ध कराना
●दुग्ध का परिहन एवं संग्रह की सुविधा प्रदान करना

ऑपरेशन फ्लड योजना द्वितीय (1981-85)

प्रथम चरण की सभी योजना को ही आधार बना कर द्वितीय योजना की कार्यक्रम बनाया गया. द्वितीय योजना को सफल बनाने के लिए 485 करोड़ रुपया खर्च किया गया. इस योजना में लगभग एक करोड़ दुग्ध उत्पादक को सहकारी समितियों से जोड़ा गया. प्रत्येक जिले के 200 से 600 ग्राम सहकारी समितियों को मिलाकर एक दुग्ध उत्पादक संघ बनाया गया. इन योजनाओं के फलस्वरूप दुग्ध उत्पादन में 45 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी हुई।

ऑपरेशन फ्लड योजना तृतीय (1985-94)

ऑपरेशन फ्लड योजना की प्रथम एवं द्वितीय योजना की सफलता के बाद इसकी तृतीय चरण की शुरुआत 1985 में कई गई. इसका विशेष कार्य पहले के दो योजनाओं के लाभों को स्थिर करना था. इस योजना के अंतर्गत देश के सभी दुग्ध उत्पादकों को सहकारी समितियों से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया. इस योजना को सफल बनाने के लिए सरकार ने 915 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान रखा. 



वर्ष
2003-04 में एक नई योजना प्रारंभ की गई जिसका मुख्य उद्देश्य देश में ग्रामीण स्तर पर कच्चे दूध की गुणवत्ता को बेहतर करना था. इसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के पशुपालकों को दुग्ध उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीक एवं आधुनिक यंत्रो के प्रयोग के लिए जागरूक बनाया गया. गाँव स्तर पर दूध प्रशीतन सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए 75 प्रतिशत वित्तिय सहायता उपलब्ध कराई गई।

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