आधुनिक समय मे पशुपालन और कृषि में क्या सम्बंध हैं।

 दोस्तों हम जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश हैं. यहां की 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर हैं. वही विश्व की कुल दुधारू पशुओं का एक तिहाई भारत मे ही पालन होता हैं. 

कुछ दशक पहले तक कृषि पूर्ण रूप से पालतू पशु और प्रकृति पर निर्भर थी. परंतु कृषि क्षेत्र में यंत्रो के उपयोगिता बढ़ने से अब स्थिति बदल गई हैं. पर क्या अब आधुनिक समय की कृषि कार्यों में पशुओं की भागीदारी समाप्त हो गई हैं? नही।

भारत के ग्रामीण क्षेत्रो की अर्थव्यवस्था और रोजगार में सबसे बड़ा हिस्सेदारी कृषि और पशुपालन का होता है. बढ़ती जनसंख्या की खाद्य उत्पादों को पूरा करने के उद्देश्य से ग्रामीण क्षेत्रो में भी अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक का उपयोग किया जा रहा हैं. 

कृषि में बढ़ते रसायनिक पदार्थो का उपयोग से जल, भूमि, वायु और वातावरण प्रदूषित हो रहे हैं. साथ ही इनसे उपजे खाद्य पदार्थ भी मानव शरीर को हानि पहुँचा सकते हैं. इसलिए इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए फसल में उर्वरक के रूप में रासायनिक खाद की जगह पशु की गोबर का उपयोग करना ही सर्वोत्तम हैं।

● कार्बनिक खाद की प्राप्ति :

 अधिक खाद्य पदार्थों की उपज के उद्देश्य से किसान अपने भूमि में रासायनिक खाद देंते है. इससे भूमि पर उपज की मात्रा तो बढ़ती हैं पर अत्यधिक मात्रा में रासायनिक खाद की उपयोग करने से भूमि की उपज क्षमता नकरात्मक रूप से प्रभावित होती हैं.

वही फसलों की उपज के दौरान उर्वरक के रूप में पशुओ के गोबर का उपयोग करना पूर्णता सुरक्षित होता हैं. इसके उपयोग से भूमि की उपज क्षमता लम्बे समय तक सुरक्षित रहतीं हैं।


कार्बनिक खेती मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप होती हैं. इससे जल, वायु, भूमि तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होते हैं।

● रसायनिक खाद का विकल्प :

अधिक मात्रा में खाद्य उत्पादन की होड़ में तरह तरह की रसायनिक खादों एवं जहरीले कीटनाशकों के उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति पर बुरा असर पड़ता हैं. साथ ही इसके उपयोग से वातावरण भी प्रदूषित होती हैं. इसलिए इन समस्याओं से बचने के लिए कार्बनिक खेती आवश्यक हैं। और कार्बनिक खेती के लिए पशु का होना आवश्यक हैं।

आहार की दृष्टि से पशुपालन और कृषि एक दूसरे पर निर्भर होते हैं. पशुओ को चारे की पूर्ति फसलों के वांछनीय पत्तियो एवं उनके साथ उग आने वाली खरपतवारो के रूप में हो जाती हैं। वहीं फसल को अपने विकास कार्य के लिए आवश्यक उर्वरक की पूर्ति पशुओं के मल-मूत्र से हो जाती हैं।

नर पशुओं को भूमि को जोतने, फसल एवं खाद को ढोने, पौधे से फसल को अलग करने आदि कार्यो में उपयोग किया जाता हैं।




दोस्तों इस तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं आधुनिक समय के कृषि क्षेत्र में पशु का उपयोगिता अद्वितीय हैं. आप यह लेख हमारे वेबसाइट ayurr.in पर पढ़ रहे हैं. मानव स्वास्थ्य और कृषि-पशुपालन सम्बंधित अन्य आर्टिकल पड़ने के लिए हमारे Home page पर विजिट करें।

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