भारत मे दलहनी फसलों की उपज को कैसे बढ़ाया जा सकता हैं ?

 इस लेख में हम भारत मे दलहन उत्पादन की मुख्य समस्याएं अथवा कम उपज होने के कारण तथा उनके उपायों को जानेंगे।

सभी दलहनी फसलें मौसम के प्रति संवेदनशील होती है मौसम सन्तुलित नहीं रहने पर दलहनी फसलों के अंकुरण, वृद्धि, फूल एवं बीज बनने की प्रक्रिया पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है. जो दलहनी फसलों की उपज की कमी का प्रमुख कारण होता है।

भारत एक असमान जलवायु वाला देश है. इसलिए भारत में दलहनी फसलों की उपज को प्रभावित करने वाले प्रमुख वातावरणीय कारक वर्षा, पाला तथा ताप परिवर्तन होते हैं।

भारत में दलहनी फसलों की उपज को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक हैं।

1. भारत के किसान अधिक उपज देने वाली दलहनी फसलों की जातियों का ही चयन करें।

2. पौधों में लगने वाली बीमारियों एवं किट-पतंगों के प्रति ज्यादा संवेदनशील रहें।

3. कम अवधि में तैयार हो जाने वाली फसलों का ही चयन करें।

4. फसल उत्पादन के लिए वैज्ञानिक तकनीक एवं आधुनिक यंत्र को प्राथमिकता दे।

5. खाद एवं उर्वरक के प्रयोग में प्रतिकूलता लायें।

दलहनी फसलों के उत्पादन में कमी के कारक एवं उनका उपाय निम्लिखित हैं :

● भूमि का चयन :

प्रायः भारत के किसान अपने प्रमुख उपजाऊ भूमि पर अन्य प्रमुख फसलो का उत्पादन करते हैं. और दाल के उत्पादन के लिए कम उपजाऊ भूमि का चयन करते हैं. जो भूमि अम्लीयता, लवणीयता, मृदा कटाव एवं जलमग्नता आदि दोषों से युक्त होती है, जिससे दलहनी फसलों का उत्पादन अधितम नही हो पाता हैं, इसलिए किसान को दलहनी फसलों के उत्पादन के लिए भी अपनी प्रमुख भूमि का ही चयन करना चाहिए।

 किसानों को अम्लीय एवं लवणीय भूमियों में मृदा सुधारक मिला कर ही दलहनी फसल उगाने चाहिए और कम उर्वरक भूमियों में कार्बनिक खादों, कम्पोस्ट, गोबर की खाद आदि का प्रयोग करना चाहिए।

● बीजो का चयन :

भारत के अधिकतम किसान अपने दलहनी फसलों के लिए उत्तम गुणों वाले बीजों का प्रयोग बुवाई में नहीं करते हैं। बीजो का संग्रहण उचित रूप से नहीं होने के कारण उनमें घुन लग जाते हैं इस प्रकार की बीजो की बुवाई करने पर सभी बीज का अंकुरण नही हो पाता, इसलिए भूमि के सभी हिस्सों में बराबर मात्रा में फसली पौधे नही उग पाते।

इसलिए हमारे किसानों को उत्पादन के लिए सिर्फ दोष मुक्त उन्नत गुणो वाली बीजों का ही चयन करना चाहिए।

● खाद एवं उर्वरक का उपयोग :

भारत के अधिकतर किसान दलहनी फसलों के उत्पादन के लिए पोषक तत्व का प्रयोग नहीं करते हैं, अतः फसल उत्पादन में कमी आ जाती हैं। दलहनी फसलों में पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन उर्वरक, फॉस्फेटिक उर्वरक, पोटाशिक उर्वरक, कैल्शियम उर्वरक का उपयोग पर्याप्त मात्रा में नहीं करने से भूमि पर फसलों का अधिकतम उत्पादन नहीं हो पाता है।

दलहनी फसलों की अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए खेत का खेत की मिट्टी का जांच करा कर आवश्यकता अनुसार आवश्यक पोषक तत्वों की संतुलित मात्रा में निम्न प्रकार से पुर्ति की जा सकती है -

 1. मृदा परीक्षण की रिपोर्ट में जिस तत्व की कमी भूमि में हो उसकी पूर्ति सबसे पहले कर देनी चाहिए, सभी दलहनी फसलों में पौधों की प्रारंभिक वृद्धि के लिए 20 से 25 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिए।

 2. सभी दलहनी फसलों में आवश्यकता अनुसार 20 से 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय खेत में दी जानी चाहिए।

 3. सभी दलहनी फसलों में 50 से 60 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर में बुवाई के समय भूमि में अवश्य ही दी जानी चाहिए।

 ● राइजोबियम कल्चर का प्रयोग :

दलहनी फसलों के उत्पादन करने वाले किसान राइजोबियम जीवाणु का उपयोग विधि नही जानने के कारण इसका उपयोग नही करते हैं, जिससे उपज क्षमता प्रभावित होती है।

दलहनी फसल के उत्पादन से जुड़े किसानों को उचित प्रजाति की राइजोबियम बैक्टीरिया से बीजों को उपचारित करना चाहिए, राइजोबियम कल्चर की पर्याप्त उपलब्धता किसान को होनी चाहिए तथा इसका उत्पादन एवं संग्रह भी भली-भांति होनी चाहिए, इस कल्चर की तकनीक के प्रयोग की जानकारी भी किसानों को दी जाने की उचित व्यवस्था राष्ट्रीय स्तर पर की जानी चाहिए। 

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